Saturday, June 2, 2012

Untitled


अथाह सागर की ख़ामोशी इस दिल मे दबा के बैठा हूँ,
जो सुनना हो तो कभी आओ रातों को मेरे किनारों पर ||

अंधे शहर की रोशनी को लहरों  मे समा के बैठा हूँ,
जो देखना हो तो कभी आओ चलके चाँदनी के इशारों पर ||

खुद को छिपा के बैठा हूँ, दुनियाँ की इस बेरहम भीड़ से,
जो मिलना हो तो आओ कभी तन्हाई के गलियारों पर ||

सात रंगो से सजा के बैठा हूँ सपनो के इस इंद्रधनुष को,
जो छूना हो गर कभी तो आओ बारिश की फुहारों पर ||

दुल्हन की तरह सज़ा के तुझे पलकों मे बिठा रखा है ,
जो मिलना हो खुद से कभी तो आओ ख्वाबों के उलारों पर ||